• दिहाड़ी मज़दूर संगठन, उत्तर प्रदेश


    दिहाड़ी मज़दूरों के लिए संगठन क्यों-

    भारत के सकल घरेलू उत्पाद में बड़ा योगदान असंगठित क्षेत्र का है और शहरी अर्थव्यवस्था में इसका योगदान 60 फीसदी से अधिक है। बावजूद इसके इस क्षेत्र के श्रमिकों की न सरकारी मान्यता है न पहचान है। इसी असंगठित क्षेत्र का सबसे बड़ा हिस्सा निर्माण मज़दूरों का है। 7 प्रतिशत संगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए 45 श्रम कानून है जबकि अधिकांश यानि 93 प्रतिशत कामगार असंगठित है तथा उनके पास किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा नही है। काम की तलाश में हम घर परिवार को छोड़ कर इस आशा में शहर की तरफ आते है कि हमें दो वक्त का खाने का इतंजाम हो जायेगा और हम अपने परिवार का पालन पोषण अच्छी तरह से कर सकेगे। न तो हमारे काम के दिन व घण्टे तय है और न ही हमारा और मालिक का रिस्ता तय है। हमारी मज़दूरी भी हमें पूरी नही मिलती। पहचान का संकट हमारे सामने हमेशा रहता है। हमें हमेशा अपनी पहचान साबित करनी होती है कभी कभी तो ऐसा न कर पाने पर पुलिस थानों के चक्कर लगाने पड़ते है।

    हम इस शहर को चलाने में अपना योगदान देते है परन्तु हमें श्रमिक के रूप में पहचान नही मिलती है। एक तरफ शहर में रोजगार के अवसर कम हो रहे है तो वही बढ़ती मंहगाई ने साथियों का जीना मुश्किल कर रखा है। असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे साथी अपने श्रम से शहर को चलाने का काम करते है वही सरकारी योजनाओं द्वारा उन्हें शहर से बाहर कर दिया जाता है। लखनऊ शहर में लेबर अड्डों पर खड़े होने वाले महिला पुरूष श्रमिक साथी बड़ी बड़ी इमारतें बनाते है जिससे शहर की सुन्दरता बढ़ती है। शहर की सुन्दरता को बढ़ाने वाले श्रमिक साथियों को सामाजिक सुरक्षा के साथ साथ लेबर अड्डों पर बुनियादी सुविधाएं तक मुहैया नही है। शहर को चलाने वाले साथियों का एक मजबूत संगठन जरूरी है जिसके माध्यम से श्रमिक साथी अपनी बात सरकार तक पहुॅचा सकें।


    ये असंगठित श्रमिक कौन है और कितने है ?

    भवन निर्माण श्रमिक ,घरेलू कामगार ,कूड़ा बीनने वाले, पटरी दुकानदार, रिक्शा चालक, पल्लेदार, छोटे -छोटे काम करने वाले आदि श्रमिक असंगठित क्षेत्र के श्रमिक है। इसी असंगठित क्षेत्र का सबसे बड़ा हिस्सा निर्माण मज़दूरों का है। लखनऊ शहर में अनुमानित 2 लाख मज़दूर लेबर अड्डज्ञें पर प्रति दिन रोजगार की तलाश में खड़े होते है। ये मूलतः निर्माण श्रमिक होते है। महीने में इन्हे लगभग 15 से 20 दिन का रोजगार प्राप्त होता है। इस तरह से साल भर में लगभग 180 दिन का कार्य करते है। ये श्रमिक आदिवासी, दलित, पिछड़ी जाति के अल्पसंख्यक, प्रवासी, आवासहीन, भूमिहीन घुमन्तू चरित्र के मज़दूर है।






    दिहाड़ी मज़दूर संगठन के कार्य.....


    दिहाड़ी मज़दूर संगठन की सदस्यता से फायदा.....




    3000

    मज़दूर

    1500

    श्रमिकों
    (कानून की जानकारी प्रदान कर श्रम विभाग में सहयोग दिया)

    35+

    लेबर अड्डों
    (लखनऊ, कानपुर)

    © 2016 UPDMS . All Rights Reserved | Design by Pay Route I.T. Solutions